शादी और मौत में समानता

शादी का ख्याब हर कोई  सजाता है,
और चाहता है बंध जाये ऐसे बंधन में
जो टूटे से भी न टूटे,
और मौत भी एक ऐसा बंधन है
जो बंधन अटूट होता है,
एक दिन सबकी खुशियों है लिए
जाना  होता है पराये घर
और जाना होता है सबको
दुखी करके भगवन के  पास
क्या समानता होती है
दुल्हन सजती है,
घर सजता है
और जब मौत होती है
तो भी सजाया जाता है
दुलहन  को उसके दुसरे घर
भेज  दिया जाता है,
और अर्थी को भी सजा कर 
भेज दिया जाता है उसके दुसरे घर
शादी में भी आसू बहते है
और मरने पर भी
कितनी समनाता है
पर एक जगह जिन्दगी शरू
होती है,
और एक जगह खत्म
सब चले जाते है आसू बहाकर
और रह जाती है बस यादे

 

टिप्पणियाँ

Rajendra kumar ने कहा…
बहुत ही बेहतरीन और सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुती ,धन्यबाद।
अरुन अनन्त ने कहा…
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-06-2013) के चर्चा मंच 1277 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
बहुत अच्छा भावपूर्ण रचना
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Naveen Mani Tripathi ने कहा…
Bilkul sahmat hoon Garima ji ....bahut hi sundar aur bhavpoorn prastuti ke liye aabhar

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