शादी और मौत में समानता
शादी का ख्याब हर कोई सजाता है,
और चाहता है बंध जाये ऐसे बंधन में
जो टूटे से भी न टूटे,
और मौत भी एक ऐसा बंधन है
जो बंधन अटूट होता है,
एक दिन सबकी खुशियों है लिए
जाना होता है पराये घर
और जाना होता है सबको
दुखी करके भगवन के पास
क्या समानता होती है
दुल्हन सजती है,
घर सजता है
और जब मौत होती है
तो भी सजाया जाता है
दुलहन को उसके दुसरे घर
भेज दिया जाता है,
और अर्थी को भी सजा कर
भेज दिया जाता है उसके दुसरे घर
शादी में भी आसू बहते है
और मरने पर भी
कितनी समनाता है
पर एक जगह जिन्दगी शरू
होती है,
और एक जगह खत्म
सब चले जाते है आसू बहाकर
और रह जाती है बस यादे
और चाहता है बंध जाये ऐसे बंधन में
जो टूटे से भी न टूटे,
और मौत भी एक ऐसा बंधन है
जो बंधन अटूट होता है,
एक दिन सबकी खुशियों है लिए
जाना होता है पराये घर
और जाना होता है सबको
दुखी करके भगवन के पास
क्या समानता होती है
दुल्हन सजती है,
घर सजता है
और जब मौत होती है
तो भी सजाया जाता है
दुलहन को उसके दुसरे घर
भेज दिया जाता है,
और अर्थी को भी सजा कर
भेज दिया जाता है उसके दुसरे घर
शादी में भी आसू बहते है
और मरने पर भी
कितनी समनाता है
पर एक जगह जिन्दगी शरू
होती है,
और एक जगह खत्म
सब चले जाते है आसू बहाकर
और रह जाती है बस यादे
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