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रंगीन शाम

शाम जब होती है, बहुत रंगीन होती है। ढलती हुई शाम भी कुछ कहती है, परिंदे भी घर को जाते है, शाम एक आनंद लेकर आती है। दिन भर की थकान दूर हो जाती है, जिंदगी में भी एक शाम आती है, जब हम बूढ़े होते है, फिर याद आती है, हर एक उस पल की, जब हम बच्चे  थे, कैसी कैसी शरारते करते थे, हर वह बात याद आती है, जिंदगी की उस शाम तुम भी बहुत याद आ रहे थे, जब वारिश मेरा तन मन भिगो रही थी, कह रही थी यह शाम यही ठहर जाए, मैं जी लूं कुछ और देर, क्या पता कब जीवन की शाम हो जाए।। गरिमा

जीने का हक़

मैं  भी औरत हूँ क्या मुझे भी जीने का हक़ है खुद का अस्तित्व मिटाकर किसी का घर बसाती  हूँ घर की सारी जिमेदारियो को उठाती हूँ हर युग में मुझे ही सारी परीक्षा देनी पड़ती है क्या मुझे भी जीने का हक़ है ममता की मूरत हूँ , सबका ध्यान रखती हूँ फिर भी मेरे हर अरमान कोदबा  दिया जाता है मुझे माँ की गुड़िया समझा जाता है क्या मुझे भी जीने का हक़ है मेरा हर कदम पर अपमान  किया जाता है मुझे हर समय छला गया मेरे हक़ में मुझे कुछ नहीं मिला कब तक बेड़िया पैरों में पड़ी रहेगी क्या मुझे जीने का हक़ नहीं है मैं भी जीना चाहती हु मैं अपना सम्मान चाहती हु मैं आसमान में उड़ना चाहती हु बेड़ियों को तोड़कर उड़ जानाचाहती  हु मुझे भी जीने का हक़ है गरिमा

राधा कृष्ण का प्रेम

प्रीत की रीत ऐसी लगी कान्हा, अब छूटे से न छूटेगी।  मैं  दुनिया के हर सुख दुःख भूली,  कृष्ण अब तेरा ही सहारा है।  दुनिया में प्रेम की कमी हो गयी,  कृष्ण तुम वापस आ जाओ।  हम तुम से ये विनती करते है, राधा के पास आ जाओ।   कृष्ण का प्यार अमर है,  राधा ने दिल  का नज़राना भेजा है।  दही मिश्री तुम्हे बुलाती है , बासुरी की धुन याद दिलाती है।  वन वन हम भटक रहे है,  तुम गाय चराने  आ जाओ,  राधा तुम्हारी राह देख रही है।  उसकी पास तुम आ जाओ,  राधा को कृष्ण की यादो ने घेर लिया,  तुम उसके सपने सजा जाओ।।  गरिमा