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करगिल दिवस

  26 जुलाई को हम करगिल दिवस मनाते हैं, आओ हम सब मिलकर उन वीर जवानों को याद करे, जिन्होंने करगिल की चोटी पर झंडा फहराया था,  क्या कहें उन बहनो को, जिनकी राखी खाक हो गयी,  उन माँ की क्या व्यथा कहूँ, जिनकी गोद सूनी हो गयी , क्या कहूँ उन दुल्हन को, जिनकी सेज युद्ध भूमि हो गई,  अगर जवान ना सीमा पर डटे रहे,  तभी चैन से हम सोते हैं,  जाड़ा गर्मी हो या बरसात,  सीना ताने खड़े रहते हैं,  बर्फ हो या रेगिस्तान,  दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए,  नमन है उन वीर जवानों को,  जिनके हाथों में हम सुरक्षित है,  मेरा शत शत प्रणाम है जवानों को ।। गरिमा लखनवी

हवा का झोंका

  तेरी यादों को लेकर एक हवा का झोंका आया, पूरे तन मन को सहला गया है, हवा का झोंका कह रहा हो, मैं तुम्हें तुम्हीं से चुरा ले जाऊँगा, उड़ा ले जाऊँगा तुम्हें इतनी दूर, जहाँ पर सकून के दो पल हो, जहाँ हम हो और तुम हो, एक ऐसे जहाँ में, जहाँ चारो ओर प्यार ही प्यार हो, हवा का झोंका मेरे मन मस्तिष्क को ताजगी दे रहा हो, हवा का झोंका मानो मुझसे बातें कर रहा हो,  तुम्हारी लट गालों पर कितनी खूबसूरत लग रही है, तुम इस जहाँ में खुशिया बिखराओ, तुम रोते हुए लोगों को हसाओ, हवा का झोंका तेरी यादों को लेकर संग आया है। । गरिमा लखनवी

सावन

   सावन की बूंदे मन को हर्षा रही हैं , ऐसे मैं तेरी याद मुझको तड़पा है,  बादल से बूंदे धरती पर टपक रही है,  पूरी पृथ्वी मानो हरी-भरी हो गई हो,  मेरे हाथों की हरी हरी चूड़ियां,  साजन को प्रदेश से बुला रही है,  बादलों ने जो कहर ढाया है,  सब जीवो को नया जीवन दे रही हो,  छोटी छोटी नदियां जो घर के आगे बन गई हैं,  उन पर कागज की नाव गोरी चला रही हूं,  खेत खलियान जो सुख रहे थे,  उन पर बादलों की बूंदे शीतलता दे रही हूं,  सजन तुम आ जाओ ऐसे मौसम में,  मेरा सोलह सिंगार तुम्हें बुला रहा है,  सावन के भीगे भीगे पल,  मुझे हर पल तेरी याद दिला रहा है।  गरिमा लखनवी