हां, मैं औरत हूं
हां, मैं औरत हूं,
जो खुद के बारे में नहीं सोचती,
हर किसी की ख्वाहिशें पूरी करना
जिसका मकसद बन गया है।
मां बनकर, बहन बनकर, बेटी बनकर,
सबके हिस्से के फ़र्ज़ निभाती हूं,
पर मेरी कौन सुनता है,
ये सवाल अक्सर खामोश रह जाता है।
दर्द मुझे भी होता है,
पर इसकी परवाह कौन करता है?
पूरे घर के लिए जीती हूं मैं,
बीमार पड़ जाऊं तो भी
मेरा हाल कोई नहीं समझता है।
हां, मैं औरत हूं,
ऑफिस जाकर काम करना मेरी मजबूरी है,
घर संभालना मेरी जिम्मेदारी है,
सबका ख्याल रखना
मेरा कर्तव्य मान लिया गया है।
पर मेरे बारे में कोई ना सोचे—
ये सबकी आदत बन चुकी है।
हां, मैं औरत हूं,
दिन-रात की परवाह किए बिना
सबको खुश करने में लगी रहती हूं,
हर रिश्ता मुझे ही निभाना है,
क्योंकि…
मैं औरत हूं।
गरिमा लखनवी
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