पाक सेना का आत्मसमर्पण
16 दिसंबर की सुबह गवाही देती है,
जब दुश्मन के 93,000 सैनिक हथियार डालते हैं,
वह दिन विजय दिवस बनकर
हर भारतीय की धड़कन में बजता है।
भारत माता के वीर सपूत,
आज भी सीना ताने खड़े हैं—
उनकी रगों में शौर्य बहता है,
उनकी नज़रों में तिरंगा लहरता है।
पर पाक अपने छल से नहीं सुधरता,
वह भूल जाता है—
कि भारत की शांति कमजोरी नहीं,
बल्कि संयम की सीमा है।
ऐ रणबांकुरो, उठो!
माँ भारती ने हुंकार भरी है,
बहुत सह लिया निर्दोषों का लहू,
अब प्रतिकार की बारी है।
कितने सपने अधूरे सो गए,
माताओं की गोद उजड़ गई,
बहनों की आँखें नम हो गईं,
अब यह ऋण चुकाने की घड़ी है।
शांति की भाषा जिसे सुनाई नहीं देती,
दया का मोल जो समझता नहीं,
उस पर दया कैसा?
जिसने देश की गोद को श्मशान बनाया है।
अब समय आया है—
उसे उसकी हकीकत दिखाने का,
क्योंकि इतिहास लिखता है,
भारत सिर्फ लड़ता नहीं,
भारत जीतता है… और विजय दिवस मनाता है ।।
गरिमा लखनवी
टिप्पणियाँ