जिंदगी से प्यार

 

तुम जिंदगी से  क्यों हार मान गए गये

 ऐसे तो न थे तुम,

जिंदगी को जीने वाले थे तुम

सबको हँसना सिखाते थे तुम

और  आज खुद ही रो दिए।

क्या हुआ जो कोई छूट गया?

क्या हुआ जो दिल गया ?

 पर खुश रहना आता था तुमको

चाहे कोई भी समय हो

जिंदगी हराने का नाम नहीं है

जिंदगी लड़ने का नाम है

चाहे  कुछ भी हो जाये

तुम खुश रहोगे

तुम्हारी पहचान तुम्हारा हसमुख स्वाभाव है

तुम नहीं तो कुछ नही नहीं है

सारी  खुशिया तुमसे ही है

क्या हुआ जो कोई दुःख आया

तुम इतना हिल गए

दुःख एक काली रात है

 उसे भूलकर फिर से मुस्कुराओ

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-04-2021) को चर्चा मंच   "ककड़ी खाने को करता मन"  (चर्चा अंक-4040)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सकारात्मक विचारों से भरी अच्छी रचना ।
Onkar ने कहा…
सुंदर प्रस्तुति.

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