क्यों कुर्बान होती है नारी

संस्कारो की भेट चढ़ती है नारी
खुशियों की दुकान की चाभी है नारी
राष्ट्र का सम्मान  है नारी
फिर नारी होती है कुर्बान
आचल में समेटे है परिवारों की खुशिया
फिर भी सहती है सबकी बाते
लोगो को ताने भी सहती है नारी
फूल जैसी होती है नारी
घर का अभियान होती है नारी
मीठी जुबान होती है नारी
सर्जन की जननी है नारी
पर सभी का पहचान होती है नारी
गरिमा का नाम है नारी
फिर क्यों कदम कदम पर होती है कुर्बान नारी
तपस्या त्याग की पहचान है नारी
फिर भी सहती है नारी
अपमान और जिल्लत सहती है नारी
तभी वो बर्दाशत करती है हर बात को
समझो न नारी को खिलौना
अपनी पर आ जाये तो दुर्गा है नारी
उसको पास होती है उम्मीद की एक दुनिया
आचल फेलाए तो ठंडी बयार है नारी
समझो न उसको  दीन  हीन 
शक्ति का अवतार है नारी
फिर क्यों कुर्बान होती है नारी

टिप्पणियाँ

कौशल लाल ने कहा…
शक्ति का अवतार है नारी
फिर क्यों कुर्बान होती है नारी......बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
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