मानवता खो गयी
मानवता खो गयी यहाँ
हर कोई है स्वार्थ में डूबा
पैसे की चकाचोंध में
क्या बच्चा क्या बूढा
हर कोई लिप्त है माया में
जनता पिस रही है महगाई से
ऐश कर रहे है नेता
अमीर अमीर हो रहे है
गरीब और गरीब
कोई नहीं पूछता किसी से
तुम क्यों उदास हो
क्या हुआ तुम्हे
मानवता के नाम पर सब शून्य
किसी के मरने जीने से
किसी को नहीं फर्क पड़ता
दुनिया है बढती रहेगी
क्या होगा ऐसे में
न कोई त्यौहार पर
किसी से मिलता है
मानवता का अंत हो रहा है
यही कलयुग है
क्या कहे इसका
न कोई अंत है
न शुरुआत
हर कोई है स्वार्थ में डूबा
पैसे की चकाचोंध में
क्या बच्चा क्या बूढा
हर कोई लिप्त है माया में
जनता पिस रही है महगाई से
ऐश कर रहे है नेता
अमीर अमीर हो रहे है
गरीब और गरीब
कोई नहीं पूछता किसी से
तुम क्यों उदास हो
क्या हुआ तुम्हे
मानवता के नाम पर सब शून्य
किसी के मरने जीने से
किसी को नहीं फर्क पड़ता
दुनिया है बढती रहेगी
क्या होगा ऐसे में
न कोई त्यौहार पर
किसी से मिलता है
मानवता का अंत हो रहा है
यही कलयुग है
क्या कहे इसका
न कोई अंत है
न शुरुआत
टिप्पणियाँ
मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
यही कलयुग है
अंत का शुरुयात
latest post नसीहत