विरह वेदना

सजना गए परदेस
हमको काहे  भूल गए
कोई दिन,  कोई महीना
 न हो ऐसा जब तुम हमको
न  आते हो याद सजना
का  ऐसी भूल हो गयी
जो  तुम हमको भूल गए
कैसे कहु हाल दिल का
अब तो सूनी सारी राहे
नैना तरस गए तेरे मिलने को
कब आओगे मेरे सजना
हम आस लिए बैठे  है
हम है तेरे बिन अधूरे
अब  तो मान भी जाओ सजना
आ जाओ  तुम लेकर कंगना 

टिप्पणियाँ

मीनाक्षी ने कहा…
विरह भाव दिखाती , मिलने की आस जगाती रचना..
Naveen Mani Tripathi ने कहा…
वाह सुन्दर रचना
Nirantar ने कहा…
virah kee vednaa kaa sundar chitran

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