मुझे जाने दो

कोई पुकार रहा  है
मुझे जाने दो
पर कोई जाने नहीं देता
कहा जाने को है बेक़रार
घर में सभी उसका कर रहे है इंतजार
पर वो नहीं आता
सभी को लगा चला तो नहीं गया
आती है आवाज़
मुझे जाने दो
क्यों तड़प रहा है वो
किसका है इंतजार उसे
आता नहीं समझ
किसी ने पूछा उससे
किसका कर रहे हो इंतज़ार
कहा है जाना तुम्हे
आवाज़ आती है मुझे जाने  दो
मत रोको मुझे
इस जहाँ से मेरा मन भर गया
इस जहाँ से जाना है,
उस दुनिया में
जहाँ पर शरीर नहीं जाता है,
वो दुनिया इस दुनिया से बढ़िया है
आवाज़ आती है तुम्हे कैसे पता
कि वो दुनिया हसीन  है
वो होता है परेशान
कहता है मुझे जाने  दो
एक आती है आवाज़
 तेरे बाद  क्या होगा तेरे माँ -पिता का
आती है रोने कि आवाज़
इस दुनिया में कोई किसी का नहीं
रिश्ते नाते सब यही रह जाते है
यह दुनिया मुझे रास नहीं आयी,
मुझे जाने दो , मुझे जाने दो
इस दुनिया से मुझे जाने  दो   

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2014) को "मुझे जाने दो" (चर्चा मंच-1534) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Rajendra kumar ने कहा…
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार।
मुझे जाने दो ....दुनिया मुझे रास नहीं आया ....पर क्यों ....?:-)
New post चुनाव चक्रम !
New post शब्द और ईश्वर !!!
जाना आसान होता है दुनिया से .. पर जो है उसे निभाना ... ताप करना जीवन भर .. मुश्किल होता है ... निराशा को आशा में बदलना ही जीवन है ...
काव्यांजलि ने कहा…
गरिमा जी अदभुत लेखन के लिये बधाई ।

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