देहज प्रथा

दुल्हन की डोली उठी
सज धज वो सुसराल चली
देहज का दानव संग् चला
जाते ही सुसराल वाले
तंग करने लगे
क्या लायी हो बहू घर से
वो बोलो  प्यार लायी हु
कहा  है पैसा और सामान
वो तो नहीं है मेरे पास
हुआ  मानवता का अंत
सब मिल करे अत्याचार
और जिन्दगी की साँस टूट गयी
एक अबला लड़की फिर रूठ गयी
रूठी अपने जीवन से
हो गया अंत
देहज का दानव खुश  हुआ
हुई उसकी जीत
हरा एक पिता बेचारा
क्या था उसका गुनाह
की एक लड़की अ जनम हुआ
उसके घर,
क्या लड़की होना गुनाह है?????????????


टिप्पणियाँ

अरुन अनन्त ने कहा…
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-06-2013) के चर्चा मंच पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
अच्छी प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
दहेज के दानव का अंत पता नहीं कब होगा. सुंदर संवेदनशील प्रस्तुति.
क्या था उसका गुनाह
की एक लड़की अ जनम हुआ
उसके घर,
क्या लड़की होना गुनाह है?
.......सुंदर संवेदनशील प्रस्तुति

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