इश्क खुद से हुआ

  जब इश्क खुद से हुआ, 

एक बार फिर इश्क हुआ, 

इस बार खुद से इश्क हुआ, 

खुद को जब आईने में देखा, 

तो लगा खुद से अच्छा कोई नहीं, 

दुनिया क्या कहती मेरे बारे में, 

उसकी कोई परवाह नहीं, 

जो खुद को अच्छा लगे वो काम करो, 

दूसरों के आंसू का सम्मान करो, 

कुछ ऐसा काम कर जाओ, 

ये दुनिया तुम्हें याद करे, 

जो कमियाँ निकालते थे मुझमे, 

वो आज मेरे मुरीद बन गए, 

हम से है ज़माना, 

ज़माने से हम नहीं, 

क्यों नहीं करती थी खुद से प्यार, 

ये सोच अब डरती हूं, 

क्या नहीं था मेरे पास ,

ये समझ नहीं पाती हूं, 

ए दिल कुछ नहीं साथ जाता ,

ये तु समझ क्यों नहीं पाता है, 

बस ये समझ ले, 

तेरा जन्म खुशियां बिखेरने के लिए हुआ है, 

खुद से भी ही इश्क कर तू, 

यही तेरी आत्मा की आवाज़ है।।

गरिमा लखनवी

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