श्रमिक की व्यथा
श्रमिक दिवस पर कुछ पंक्तियां श्रमिक की व्यथा कैसी होती है, दिन भर वह मेहनत करता है, फिर चार पैसे कमा पाता है, ज्यादा हो गर्मी या बरसात, हर रोज काम पर आता है। श्रमिक ना हो तो अनाज भी ना हो, सड़कें भी पक्की ना बने, श्रमिकों के हालात पर, किसी को रहम ना आता है। सब जगह खुशहाली होती है, श्रमिकों के ही कारण, धरती में हरियाली है, श्रमिकों के ही कारण। अगर श्रमिक ना हो तो, धरती बंजर हो जाएगी। फिर कहां से बढ़िया घर, दफ्तर बनाओगे। दुनिया का विकास हुआ, श्रमिकों के ही कारण। श्रमिक जी रहे तंगहाली में, उसकी सुध न कोई ले पाया। श्रमिक अपनी व्यथा जाकर किसको सुनाएं, अपने बच्चों के सपने कैसे पूरा कर पाए। गरिमा लखनवी