मेरी लेखनी का आज उनको एक प्रणाम, 

देश प्रेम किया जिन्होंने बिना थके बिना विराम, 

आज मैं उनको याद हूं करती, 

जिन्हें दुनिया सुभाष है कहती, 


देशभक्ति का वो मतवाला,

मातृभूमि की रक्षा करने वाला, 


अपनी सूझबूझ और कूटनीति से, 

जिसने क्रांति की मशाल जलाई, 

बलिदानी सिरफिरे युवाओं में, फिर यह मशाल बुझने ना पाई, 


इतिहास नया रच डाला था,

अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी,

 उसने ऐसा जोश भर डाला था,

जिसने आजादी की नींव डाल दी थी


आज मेरी कलम यह कहती, 

आजादी के उन परवानों से, 

गुलामी की जंजीर तो टूट चुकी, 

पर खतरा है उन नाफरमानों से,

फैला रहे जो अराजकता, 

आतंकवाद का थामा है दामन जिननें, 

देश का सौदा करने को, 

मचल रहा है मन जिनका,

आओ आज सुभाष के सपनों पर, 

उनके सुझाए पथ पर चलकर, 

 आजाद हिन्द फौज का फिर से निर्माण करें,

 देश में फैले अराजक तत्वों को ,

हम सब मिलकर दमन करें, 

मां भारती कर रही करुण क्रंदन, 

हे सुभाष आ जाओ अब धरती पर फिर से, 

त्रास हरो फिर से जन मन के, 

 फिर से सब में जोश वो भर दो, देश प्रेम की भावना से सबको ओतप्रोत कर दो।

है जन्मदिवस तुम्हारा आज, 

है शत शत नमन हमारा आज, 

मेरी लेखनी का लेख ये तुमको अर्पण, 

अतुलनीय है तुम्हारा समर्पण। 

एक बार फिर से आ जाओ, 

मां भारती कर रही स्मरण।। 


गरिमा लखनवी

टिप्पणियाँ

i b arora ने कहा…
निश्चय ही आज बाहर से अधिक भीतर से है खतरा. आज फिर किसी को सुभाष बनना होगा.

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