दिवाली की खुशियाँ

हमने कहा प्रिय -
आओ दिवाली मनाये
खुशियों का रंग सबके
चहरे पर ले आये
दिए की लौ से हर तरफ
अँधेरा दूर भगाये
जैसे ही दिया हमने जलाया
देखा
दूर कही अँधेरा फैला है
और बच्चो की सिसकती आवाज़
मेरे दिल को भेद रही है
हम वहाँ गए तो देखा
करुण क्रन्दन हो रहा था
सब बैचेन थे कैसे दिवाली मनाये
जब पड़ोस में अँधेरा हो तो
प्रिय
हम कैसे दिवाली मनाये
फिर दिए लाकर दिए हमने
और मिठाई से शुभ किया हमने
बच्चो को  पाटखे दिए हमने
फिर भी दिल उदास है
कैसे मनाये दिवाली हम
माँ की आखो में वो सूनापन
क्या त्यौहार हमारे नहीं है
बच्चे दूध और अच्छा खाना को तरसे
तो प्रिय ऐसे में कैसे दिवाली मनाये हम
गरिमा 


टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-10-2019) को  "धनतेरस का उपहार"     (चर्चा अंक- 3499)     पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कविता रावत ने कहा…
बहुत सुन्दर सामयिक रचना
शुभ-दीपावली!
Nitish Tiwary ने कहा…
सुंदर प्रस्तुति।
दीपावली की शुभकामनाएं।

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