ससुराल एक इम्तहान
ससुराल एक इम्तहान है
जिससे सबको गुजरना है
हर लड़की या लड़के का ससुराल होता है,
सास हिटलर के समान होती है
ससुर हर घाव पर मरहम लगाते है
ननद तो घर की रानी होती है,
जो बहू को नौकरानी समझती है
देवर के कहने
वो तो पूरे घर लाडला होता है
बहू जो आती है बड़े अरमानो से
उसे गुजरना होता है हर इम्तहानों से
अगर फेल हुई किसी इम्तहान में
तो यही कहा जाता है
मायके में कुछ सिखाया नहीं,
क्यों लगती है ये तोहमत
ससुराल में जितना भी कर ले बहू
उसे गुजरना होता है हर इम्तहान से
गरिमा
जिससे सबको गुजरना है
हर लड़की या लड़के का ससुराल होता है,
सास हिटलर के समान होती है
ससुर हर घाव पर मरहम लगाते है
ननद तो घर की रानी होती है,
जो बहू को नौकरानी समझती है
देवर के कहने
वो तो पूरे घर लाडला होता है
बहू जो आती है बड़े अरमानो से
उसे गुजरना होता है हर इम्तहानों से
अगर फेल हुई किसी इम्तहान में
तो यही कहा जाता है
मायके में कुछ सिखाया नहीं,
क्यों लगती है ये तोहमत
ससुराल में जितना भी कर ले बहू
उसे गुजरना होता है हर इम्तहान से
गरिमा
टिप्पणियाँ
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....