मानवता खो गयी कही

आज मानवता खो गयी कही
हर कोई लूटने में  लगा है
कैसे हम  आगे बढे
इसी सोच में  डूबा है
लूट रही है अस्मिता नारी की
कहा रह गयी मानवता
किसी  को हो दुःख
तो लोग  मजाक बना देते है
कहा है संवेदना
बड़े घरो में जो रहते है
वो और भी दुखी है
हर कोई उसका उठाता फायदा   है
  कहा है मानवता
 हर तरफ अँधियारा है
कौन दीप जलाये
और जो खो रही मानवता
उसे ढूढ कर कहा से लाये
गरिमा 

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (26-12-13) को चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
annapurna ने कहा…
सुन्दर मर्म स्पर्शी रचना , बधाई ।
काव्यांजलि ने कहा…
आपकी रचना धर्मिता को नमन ।आप बेहद खूब सूरत लिखती है । बधाई
प्रेम सरोवर ने कहा…
बहुत ही शानदार प्रस्तुति। मेरे ने पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है DREAMS ALSO HAVE LIFE. पर आपका इंतजार रहेगा।

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