नारी तुझे प्रणाम

जीवन भर  सहती सजा
यही तेरी है व्यथा
नहीं तेरे मन में  कोई   पाप
करती  तू सबको माफ़
तेरा जीवन सागर से महान,
   चलते  रहना  तेरा काम  
  घर  को  तुम स्वर्ग बनाती
रिश्तो को भी तुम  सजाती
जैसे हो दिया की बाती
पर फिर भी क्यों समझ  नहीं पाते
तेरी को क्यों अबला बताते
तो है जननी तू है महान
खुद को भुलाकर जीती है
सबके खुश  में खुश होती है
अपने दर्द छुपाती  है
फिर भी क्यों नहीं समझ पाते
नारी की महानता को
ऐसी नारी को मेरा प्रणाम 

टिप्पणियाँ

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…
बहुत ही बढ़िया


सादर
विभूति" ने कहा…
सार्थक अभिवयक्ति......
Naveen Mani Tripathi ने कहा…
ak nari ki vyatha nari se behatar kaun samajh sakta hai ....bahut hi bhavpoorn udgar ....aabhar

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