बज गयी चुनाव की घंटी
सब नेता लुभाने लगे जनता को
क्या होगा परिणाम ये कोई नहीं जानता
पर सभी लगे है जानता को अपनी और 
लुभाने में
जनता भी जानती है इनके वायदे
फिर भी आ जाती है इनके वायदों में
जनता का न रखते  ये ख्याल
वो तो अपनी जेब सिलाते
जनता रोये या मरे
उन्हें कोई ख्याल नहीं
वो सेकते  अपनी राजनीती की रोटिया
कोई पार्टी हो या या कोई नेता
सब एक ही तरह है
ऐसा मुखिया हो तो क्या कहना
क्या करे जनता और क्या करे नेता
 









 
 




 

टिप्पणियाँ

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…
बहुत बढ़िया :)
विभूति" ने कहा…
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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