जीवन धूप और छाव

कभी धूप तो  कभी छाव है जिंदगी
मीठे खट्टे अनुभव का नाम है जिंदगी
कुदरत की नियामत है जिंदगी
अगर ये  जिंदगी न होती तो क्या होता
नए नए अनुभव देती है जिंदगी
हर नए पाठ पढ़ाती है जिंदगी
जिसे कोई न  समझ पाए वो सबक है जिंदगी
अपने कर्मो के आधार पर चलती है जिंदगी
कोई न जान सके ऐसी पहेली है जिंदगी
किसी के लिए बहुत प्यारी है जिंदगी
किसी के लिए रो रो कर गुजरती है जिन्दगो
हर हाल में खुश रहे ऐसी है जिंदगी
माँ से मिले उपहार है जिंदगी
हम ऐसे ही न बिताए जिंदगी
कुछ कर  दिखाए हम जिंदगी को
दूसरो से हटकर बिताये जिंदगी
जिंदगी भी कहे क्या है जिंदगी
- गरिमा 

टिप्पणियाँ

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (30-11-2016) के चर्चा मंच "कवि लिखने से डरता हूँ" (चर्चा अंक-2542) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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