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धोखा

   आप तो ऐसे न थे,  मगर मेरी किस्मत मुझे कहाँ ले आई, इस दोराहे रास्ते पर मुझे,  मंजिल का पता भी नहीं,  मेरी मंजिल मुझे मिले  या ना मिले,  आपकी बातों पर यकीन करके,  मैंने धोखा खाया है,  अपने आप को पहचानने की हिम्मत, अब मुझमें नहीं बची,  आप ने ऐसा क्यों किया,  क्यों दिया धोखा मुझे?  कह देते में तुम्हारी मंजिल नहीं, तुम्हारी मंजिल कोई और है,  क्या बिगड जाता आपका,  मैं तो यकीन कर लेती,  आप मुझे धोखा न देगें,  पर अब क्या करूँ,  जिन्दगी से उब होने लगी,  समझ में नहीं आता किस पर यकीन करें,  आप से ऐसी उम्मीद तो ना थी,  मुझे क्या पता कि आप ऐसे मतलबी बन जायेंगे।। गरिमा Lucknavi