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पीले पत्ते और बुढ़ापा

  पीले पत्ते जो डाली से टूट जाते है,  वैसे ही इंसान बूढ़ा होकर टूट जाता है,  डाली के पीले पत्ते अपनी व्यथा कहते हैं, वैसे ही बुढ़ापा अपना उम्र का राज सुनाता है,  पीले पत्तों की परवाह कोई नहीं करता है,  बूढे इंसान को भी आज बोझ समझा जाता है,  क्या हो गया है आज की पीढ़ी को,  जो आया है वो ढल जाएगा ये क्यों नहीं समझा जाता,  कितनी कहानी कहती है वो बूढी आखें,  कितनी कहानी कहती है वो पीले पत्ते,  हम क्यों नहीं समझा पाते हम भी बूढे होंगे,  और एक दिन गिर जाएंगे पीले पत्तों की तरह,  कितनी यादे होंगी उन पत्तों से हमे,  कितने जतन से पाला होगा हमने,  अब ना वो समय रहा ना ही वो लोग रहे,  में देखता हूं पीले पत्तों को अपने बच्चों की तरह, बहुत सारी यादे जुड़ी है उनसे ,  पीला पत्ता और बुढ़ापा एक दूसरे के पूरक हैं,  जैसे जिन्दगी की शान ढ़ल रही है, वैसे ही पेड़ के पीले पत्ते झड़ रहे हैं, बूढे लोगों का सम्मान कीजिए,  उनसे प्यार के दो बोल बोलिये।। गरिमा लखनवी