जाड़ा का दिन
जाड़े की सुबह एक दिन
सूरज की किरणें से खेलती तितली
पूछती है दूसरी तितली से
तुम इतनी उदास क्यों है
वो बोली सब तरफ अंधकार है
जब सूरज की किरणें आएगी
तो क्या होगा मेरे देश का
इसी चिंता में हूँ
हर तरफ शोर है
हर कोई बेकारी झेल रहा है
जाड़े की सुबह सूरज निकलने से पहले
ये चिंता सब तितली करती है
क्या होगा मेरे देश का
सूरज की किरणें से खेलती तितली
पूछती है दूसरी तितली से
तुम इतनी उदास क्यों है
वो बोली सब तरफ अंधकार है
जब सूरज की किरणें आएगी
तो क्या होगा मेरे देश का
इसी चिंता में हूँ
हर तरफ शोर है
हर कोई बेकारी झेल रहा है
जाड़े की सुबह सूरज निकलने से पहले
ये चिंता सब तितली करती है
क्या होगा मेरे देश का
टिप्पणियाँ
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-11-2014) को "काठी का दर्द" (चर्चा मंच 1806) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'