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जाड़ा का दिन

जाड़े की सुबह एक दिन सूरज की किरणें से खेलती तितली पूछती है दूसरी तितली से तुम इतनी उदास क्यों है  वो बोली सब तरफ अंधकार है   जब सूरज की किरणें  आएगी  तो क्या होगा मेरे देश का    इसी चिंता में हूँ      हर तरफ शोर है हर कोई बेकारी झेल रहा है  जाड़े की सुबह  सूरज निकलने से पहले ये चिंता  सब   तितली करती है क्या होगा मेरे देश का

हम सब एक है

एक धरती एक उपवन हम सब उसके बासी है मिली धूप हमें एक बराबर मिटटी के कर्ण के सामान हम रूप रंग हो भले अलग हमारे पर मन से हम एक  है अलग अलग  है बोली हमारी हम सब  फिर भी  एक है सूरज एक हमारा है जो किरणे फैलाता है देता है रौशनी हमको जग का  अँधेरा मिटाता है एक चाँद है जो देता है शीतलता हमको फिर भी हम सब  एक है कितना कुछ दिया हमको पर हम समझ  न पाए लड़ते  रहते है हम सब क्यों न प्यार की भाषा समझाए हम सब एक है ये सबको  बताये

पिता

पिता एक वृक्ष के सामान होता है, जिसकी छाया में बच्चे अपना घर बनाते है और माँ होती है उसकी छाया पिता की बाहें होती है मजबूत सबको साथ लेकर चलती है जाड़ा हो या गर्मी वो सब सह कर भी देता है बच्चो को सुरक्षा अपनी सुख की   परवाह न करते देता है ख़ुशी अपने बच्चो को पिता होता है महान हर छोटी छोटी बातों का रखता है ख्याल सब माँ को देते है सम्मान पर दोनों का है काम महान पिता न हो तो अधूरा है जीवन पिता है सारे घर की शान लोरी नहीं सुनाता है तो क्या बच्चो को घूमता है वो उसके साथ बच्चे भी होते है खुश पिता को भी मिलना चाहिये सम्मान