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अक्तूबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देेश और नेता

देश है तो नेता  है नेता है तो जनता है, जनता है तो वादे है वादे है तो सपने है, सपने है तो आशा है आशा है तो नेता है नेता है तो वादाखिलाफी है घोटाला है तो घोटाला करने वाले नेता अफसर है घोटाला करने वाले वाले नेता अफसर है तो काले धन्धे है कले धन्धे है तो छानबीन है छानबीन है तो सरकारी अफसर है सरकारी अफसर है तो भष्ट्राचार है भष्ट्राचार है तो घोटाला है, सरकारी काम है तो कामचोरी है कमचोरी है तो हडताल है हडताल है तो बेकारी है बेकारी है तो बेरोजगारी बेरोजगारी है तो नेता है नेता है तो घोटाला है घोटाला है तो नेता है

महिलाओं की स्थिति चिंताजनक

यह बिडम्बना ही है कि आज स्त्री विमर्श चर्चा का विषय बन कर रह गया है। इसके लिये आन्दोलन भी होते है, पर कोई बदलाव नहीं आया है। क्या यह विषय मात्र चर्चा का रह गया है हर जगह लडकियो को ही त्याग करना पडता है। उन्हे शिक्षा से भी वंचित रखा जाता है, लडकियॉ एक नन्हे पौधे  की  भाति होती है जिसका बीज कही लगता है और पेड कही और बडा होता है। जब पौधा छोटा है तो उसकी देखभाल बहुत प्यार से की जाती है और एक दिन उसे दूसरे जगह लगा दिया जाता है। ऐसा ही कुछ लडकियो के साथ होता है। वहॉ माली पानी नही डालता है तो पौधा मुरझा जाता है उसी तरह से लडकियो के साथ होता है।         क्या बिडम्बना है कि हर दूसरी लडकी कुपोषण का शिकार है। 1000 पुरूषों पर 914 लडकियॉ है कितनी भयावह स्थिति है। हर 10वी लडकी यौन शोषण का शिकार होती है। कितनी लडकियो को कोख में मार दिया जाता है क्या दोष है उनका बस यही कि वो लडकी है, क्यो नही उसे भी इन्सान समझा जाता है। आज भी लडका पैदा होनक पर मिठाई बटती है, और लडकी पैदा होने पर बहू को कोसा जाता है। यह भी सही है कि यह स्थिति आज से नहीे काफी पुरानी है। हमेशा लडकियो को ही सहना पडता है, हर जगह उनको ही झ

विवेकानन्द और अध्यात्म

विवेकानन्द जी का नाम आते ही एक ऐसे महान हस्ती याद आती है जिन्होनें 39 वर्ष की आयु में ही समाज के लिये इतना काम कर दिया और समाज को एक दिशा दिखाकर वापस चले गये। पर क्या हम उनकी  शिक्षाओ को अपने जीवन में उतार पाये है यह बडा प्रश्न है? आज समाज जिस दौर से गुजर रहा है उसमे अध्यात्म की बडी कमी महसूस हो रही है। विदेष में रह रहे लोग अध्यात्म के तरफ बढ रहे है जबकि भारत अध्यात्म के लिये जाना जाता है, जहॉ कण कण मे भगवान बसते है वहॉ अध्यात्म खत्म होता जा रहा है। हम कहते है ‘ मातृ देवो भव पितृ देवो भव’ अर्थात माता को भगवान समझो, और पिता को भगवान समझो’। परन्तु विवेकानन्द जी ने कहा ‘ दरिद्र देवो भव, मूर्ख देवो भव,’ इन गरीबों, अनपढों, अज्ञानियों और दुःखियों को ही अपना भगवान मानो। याद रखो केवल इन की सेवा ही तुम्हारा परम धर्म है, हमें बताया गया है कि आप सभी की सेवा करे सभी में भगवान बसते है। विवेकानन्द जी ने बताया कि केवल जानकारी प्राप्त करने से ही ‘शिक्षित’ नही कहला सकते जब तक हम उसे आत्मसात न करे तब तक वो पूर्ण शिक्षा नही होती । हमें अपने विचारो को इस तरह आत्मसात कर लेना चाहिए कि उनके द्वारा हमारा ज

मॉ की महिमा निराली

मॉ की महिमा निराली होती है। नवरात्र में हर तरफ उन्ही की धूम है। पूरा देश इस समय पूजा में व्यस्त है, सभी किसी न किसी तरह से मॉ को खुश करने में लगे हुए है पर अफसोस की बात यही है कि जिसकी पूजा आज सारा संसार कर रहा है उसकी अस्मत की रक्षा कोई नहीं कर पाता है। यही बिडम्बना है कि जिस मॉ ने हमें जन्म दिया उसकी रक्षा हम नहीं कर पाते है। मॉ का नाता जन्म से नहीं सासों से होता है फिर भी कोई नहीं समझ पाता है, जो मॉ को समझने का दावा करते है क्या वो मॉ की हर बात को समझ पाते है उसकी त्याग, तपस्या, बलिदान, तप यह सोचनीय विषय है मॉ को कोई नही समझ सका है। मॉ एक अहसास है, पर कोई नही जानता । मॉ शब्द से हर कोई जुडा हुया है, खुद गीले में सोकर हमें सूखे में सुलाती है। आज जो हो रहा है वो कितना बुरा हो रहा है, मॉ की इज्जत को तार-तार किया जा रहा है जिस मॉ ने हमें जन्म दिया उसकी स्थिति खराब कर रहे है। क्या किसी ने सोचा कि अगर लडकी न हो तो क्या मॉ मिल पायेगी। मॉ के हाथ का खाना खाकर उसके गोद में सर रखकर साने का आनंद ही कुछ अलग है। बच्चे को समाज में एक मुकाम पर पहुचाती है मॉ महान होती है। मॉ तेरे अनेको नाम तूझे