अँधेरी रात में दिया कौन जलाये

अँधेरी रात है कौन दिया जलाये
कोई प्रकाश  की  किरन नहीं
कौन जग में दिया जलाये
कल्पना के बीज बो दिए
पर उजाले में वो दिवास्वप्न  लगता है,
है बेरोजगारी  चारो तरफ
मन है नोजवानो के अँधियारा
अँधेरी रात है कौन दिया जलाये
भटकाव का अँधियारा है
प्रजा में है अँधियारा
कोई राजा नहीं है जो दीप   जलाये
 और अपने राज्य में अँधेरा मिटाये
 हर तरफ अँधेरा है
ऐसे में  सब मिल दीप जलाये
अपने चारो तरफ का अँधेरा मिटाये
अँधेरा बेरोजगारी का, भ्रष्टाचार का
जातिवाद  का
और अपने देश को जगमगाए 

टिप्पणियाँ

विभूति" ने कहा…
खुबसूरत प्रस्तुती....
Rajendra kumar ने कहा…
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08-11-2013) को "चर्चा मंचः अंक -1423" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
काव्यांजलि ने कहा…
गरिमा जी आपकी हर रचना लाजवाफ है ।बधाई

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