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अप्रैल, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वोट

वोट मांगते चलो  , वोट मांगते चलो क्या तेरा क्या मेरा, सब है देश का रे वोट मांगते चलो, वोट मांगते चलो ए भैया जरा वोट देना, हम आये वोट मांगने कहे को वोट दे हम तुम तो हो ठग भैया वोट मांगते चलो  , वोट मांगते चलो हम पानी देंगे बिजली देंगे भरस्टाचार मिटायेंगे भूख, भय,को दूर भाएंगे सबको परखा हमको परखो यही नारा लगाएंगे वोट मांगते चलो  , वोट मांगते चलो  आया है चुनाव का मौसम, सब मस्त है इस  मस्ती में क्या युवा क्या बूढ़े सब है वोट डालते वोट मांगते चलो  , वोट मांगते चलो

आज की राजनीति

आ गया मौसम चुनाव का सब तरफ छाया है नशा चुनाव का देश  के लिये लड़ने मरने को तैयार हर कोई अपने को साबित करने को तैयार उससे बड़ा देश भक्त कोई नहीं सब देश की कर रहे है चिंता पर चुनाव खत्म सब चिंता खत्म वादे भूल जाते है, वादे किये ही जाते है भूलने के लिए पर जनता कितनी भोली है कर लेती है यकीन और हर बार मिलता है उसे धोखा बन जायेंगे राजा एक बार फिर और दे जायेंगे जनता को धोखा कोई वादा नहीं होगा पूरा हर कोई सेकता है अपनी रोटियाँ बस पिसती है तो जनता बेचारी क्या यही है राजनीति

जिंदगी का तजुर्बा

 क्यूँ जिंदगी ने आज हरा दिया, आँसू की तरह नजरो से गिरा दिया जिंदगी तो पल पल कल कल रगो में  बहती थी चेहरे ही नहीं अपनी तो पलके  भी हँसती थी फिर उसका दामन छूटा  कैसे सांसो से जुड़ा रिश्ता टूटा  कैसे जीवन हार जीत नहीं महज  संघर्ष है   हम है ! रहेंगे  इसका ही हर्ष है बजूद मिटता नहीं है एक हार से जिंदगी मिटती  नहीं गमो के मार से आओ खुद का नव  निर्माण करे अपने आप का खुद से सम्मान करे जिंदगी अपने आप ही फिर से संवर जायेगी सफलता अपने आप ही फिर से सर झुकायेगी गरिमा

जिंदगी से प्यार

तुम जिंदगी से  क्यों हार मान गए गये  ऐसे तो न थे तुम, जिंदगी को जीने वाले थे तुम सबको हँसना सिखाते थे तुम और  आज खुद ही रो दिए। क्या हुआ जो कोई छूट गया? क्या हुआ जो दिल गया ?  पर खुश रहना आता था तुमको चाहे कोई भी समय हो जिंदगी हराने का नाम नहीं है जिंदगी लड़ने का नाम है चाहे  कुछ भी हो जाये तुम खुश रहोगे तुम्हारी पहचान तुम्हारा हसमुख स्वाभाव है तुम नहीं तो कुछ नही नहीं है सारी  खुशिया तुमसे ही है क्या हुआ जो कोई दुःख आया तुम इतना हिल गए दुःख एक काली रात है  उसे भूलकर फिर से मुस्कुराओ

जीवन क्या है

जीवन के  आपाधापी में  यह सोच न पाया कि जीवन क्या है? क्या बुरा किया क्या भला किया कैसे बीत गए पल सारे हर तरफ अँधेरा है भागमभाग है, सोच नहीं पा रहा है किस तरफ जाऊ मैं  जहा खड़ा था वही खड़ा हूँ  मैं समझ न पाया की जीवन का सच क्या है क्यों भाग रहा हू मैं? किससे भाग रहा हूँ ? क्या यही है जीवन जिसमे भाग दौड़ लगी रहती है जिसको सोना समझा वो मिट्टी निकला जिसको पीतल समझा वो हीरा निकला जीवन क्या है पानी का बुलबुला मुझसे पूछा  जाता तो में क्या बोलूँ कैसे बीत गए दिन सारे अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर हूँ  सोच रहा हूँ क्या खोया क्या पाया मैंने कैसे बीता जीवन मेरा यह सोचता हूँ फिर भी जीवन क्या है यह समझ नहीं पाता हूँ