पत्थरों का शहर

पत्थरों  के इस शहर में
किस  से दिल  लगाऊ
हर कोई लगाये  है चहेरे
कोई नहीं लगता है अपना
 किस से दर्द बताऊ
पत्थरों के शहर में
न दिलहै न जज्बात,
हर कोई लगता है झूठा
कैसे  हाल बताऊ
सब कोई हँसते है हम पर
का से दर्द बताऊ
पत्थरों के शहर में
हर कोई हेरान है

टिप्पणियाँ

विभूति" ने कहा…
खुबसूरत अभिवयक्ति......
Rajendra kumar ने कहा…
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति आज रविवार (18-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 89" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
स्वाति ने कहा…
पत्थरों के शहर में सरे एहसास पत्थरों के हो गए हैं …. सुन्दर रचना ….
हम अपने दिल का हाल अक्सर पत्थर के सामने ही बोलते हैं
किसी किसी की वो सुन भी लेता है :-)

बहुत सुन्दर रचना !

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

स्वप्न बिकते है

मुझे जाने दो

राखी का बंधन