संदेश

जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कंकड़

कंकड़ का क्या अस्तिव एक छोटा सा टुकड़ा जो घर पर मारो तो काच टूट जाये बने तो घर की नीव बन जाये जितना छोटा कंकड़ उतने उसके फायदे प्रेमी इसका उपयोग प्रमिका को जागने में करते बच्चे नदी में मारते, जब मारते तो नदी में होती है हलचल तो बच्चे होते है खुश कंकड़ क्या होता है इतना छोटा सा कड क्या क्या कमाल दिखाता है प्रेमी के लिए है वरदान कंकड़ न होता तो क्या होता दुनिया होती कितनी  वीरान कंकड़ है कितना छोटा सा पर काम  करता कितने महान 

फिर छाया बसंत

सजी धरती आज फिर पीली चुनरिया ओढ़कर, हर तरफ छाई  है फूलो की महक हर कोई खुश  है आम की बोर देखकर सूरज ने भी आखे खोली सरसों भी फूली हुई है चारो और आया सखी फिर से बसंत कोयल की कूक है चारो ओर, सब कुछ लगता कितना नया फागुन खड़ा है  दरवाजे पर सब पर है मस्ती छाई और छाई है माँ सरस्वती  की आराधना की  धूम हर कोई नाच रहा है ठण्ड से मिली राहत आया सखी फिर से बसंत

सिर उचा रहे देश का

 शान न भारत की घटने पाए हम भारत के बेटे है, जान दे देंगे हम पर देश पर आच न आने देंगे 64  साल बीत गए आओ सोचे क्या खोया हमने और कहा पर हम  आये 64 साल  बाद भी हम मानसिक  रूप से   गुलाम रहे हम अब भी देश से न  जुड़ पाए तो हम क्या कर पाएंगे केवल बुराई करके, हम अपने फ़र्ज़ से क्या हम सोचो बच  पाएंगे आज फिर से  विचार करे हम क्या खोया क्या पाया है कितना हम देश से जुड़ रहे और कितना हम  भाग रहे आज फिर वो समय आ गया जब हम फिर से  संकल्प ले की भारत की शान  खोने न देंगे   

नारी

नारी  हू   में मुझमे  है छमता, फिर  क्यों समझते है कमजोर  मुझे,  मैंने सबको चलना सिखाया,  सब कुछ भूल किया सब  अर्पण फिर भी क्यों हू में अबला सहनशक्ति है मेरे अंदर दुर्गा का रूप हू फिर भी क्यों नहीं मानते सब  क्यों कहते है नारी तो बर्बादी है नारी न होती तो ये दुनिया न होती ये क्यों नहीं मानते है आज हर जगह बदनाम हो  रही क्यों सब  ऐसा काम कर रहे मेरे अंदर भी है एक जान ये  क्यों नहीं जानते    

प्रेम

प्रेम  शब्द  है  या  विस्बास क्या है प्रेम?  प्रेम  अनछुआ सा  अहसास है    जो महसूस किया जाता है   प्रेम को कोई नहीं समझ सका है, प्रेम  था   राधा का  ऐसा प्रेम कहा मिलता है, प्रेम सावन की  बूंदे है प्रेम बहती नदी है  प्रेम हर  एक  जगह  में है फिर भी  लोग लड़ते है क्यों?  अगर सब यही समझ  ले तो   नफरत के लिए जगह ही न  रहे, प्रेम हो हर तरफ तो दुनिया  कितनी अच्छी हो