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मानवता खो गयी कही

आज मानवता खो गयी कही हर कोई लूटने में  लगा है कैसे हम  आगे बढे इसी सोच में  डूबा है लूट रही है अस्मिता नारी की कहा रह गयी मानवता किसी  को हो दुःख तो लोग  मजाक बना देते है कहा है संवेदना बड़े घरो में जो रहते है वो और भी दुखी है हर कोई उसका उठाता फायदा   है   कहा है मानवता  हर तरफ अँधियारा है कौन दीप जलाये और जो खो रही मानवता उसे ढूढ कर कहा से लाये गरिमा 

नारी सहने का नाम नहीं

नारी सहने का नाम नहीं है, नारी जननी है,नारी रक्षक है,   अगर नारी न  यह दुनिया बेगानी है, फिर भी क्यों होते जुल्म होते नारी पर पुरुषो का शिकार बनती है नारी पर फिर भी सहती है माँ, बेटी, बहन, भाभी है अनेको रूप इसके नारी को जाता है पूजा पूजा फिर भी कलयुग में रहे है सितम इस  पर  क्या जन्म इसलिए है नारी का इसे  सताया जाये जलाया जाये कब तक सहेगी नारी क्यों भगवान ने बनाया  सहनशील नारी नारी सहने का नाम नहीं है अब  एक चिंगारी है नारी ब   

बचपन

प्यारा बचपन न्यारा बचपन और  कितना दुलारा बचपन रोते  है हम चुप होते है फिर  सपनो में खो जाते है, परियो  की रानी आती है खूब हसाती खूब खिलाती कितना सुखमय बचपन न  कोई चिंता न परशानी सुनते  हम राजा की  कहानी नानी दादी हमें सुनाती हम न सोते  वो सो जाते कितना भोला बचपन बाते छोटी छोटी कहते  सब सुन हस देते प्यार  सभी को मिलता ऐसा प्यारा बचपन बचपन सुखमय होता है प्यारा और दुलारा बचपन 

स्वप्न बिकते है

 स्वप्न बिकते है बोलो  खरीदोगे कोई रोजगार  का स्वप्न बेचता  तो नेता महगाई कम करने का गरीबी हटाने का साधू बेचते है भगवान को पाने का  कहते है कई लोग  हम आपको  बना देंगे अमीर, हर कोई स्वप्न में है डूबा  अभी  आ रहे है चुनाव  सब को यही लालच है हम  बन जाये   अमीर कोई  काम नहीं करना चाहता कंपनी कहती है मेरा सामान खरीदो तो  तुम्हे मिलेगा सोना का सिक्का पर जनता है मुर्ख  वो ये नहीं समझती कोई   अपने घर से कुछ नहीं लाता सब जनता से  करते है स्वप्न  बिक रहे है सब सपनो में  जीते है  क्या होगा नोजवानो का  जो इन दिवास्वप्न में जीते है स्व्प्न बिकते है बोलो खरीदोगे   

नेताओ की लड़ाई

देश  के नेता  लड़ रहे है कुत्ते बिलिओ की  तरह, हर नेता को चहिये सत्ता भले ही जनता चाहे  हो कितनी फटेहाल हर पाँच वर्ष में यह है जागते  किसी को प्याज की चिंता तो किसी को याद आता है हिंदुत्व कुछ तो ऐसे है जो सजाये है ख्याब अगर सत्ता मिल जाये तो कैसे माल कमाये, जनता बिचारी फटेहाल कोई डूबा शेयर मार्केट में तो कोई महंगाई से परेशान चारो तरफ है नारा हमें वोट दो हमें वोट दो और उन नौजवानो का मिल गया गुजारा अब  उनको मिल रहा है काम कि नेता जी को वोट दिलाओ और हमसे माल कमाओ कहा जायेगी इस देश कि जनता हर नेता है  पैसे का भूखा किसको जिताओ भैया इससे अच्छा मुँह ढ़ककर  सो जाओ भैया 

अँधेरी रात में दिया कौन जलाये

अँधेरी रात है कौन दिया जलाये कोई प्रकाश  की  किरन नहीं कौन जग में दिया जलाये कल्पना के बीज बो दिए पर उजाले में वो दिवास्वप्न  लगता है, है बेरोजगारी  चारो तरफ मन है नोजवानो के अँधियारा अँधेरी रात है कौन दिया जलाये भटकाव का अँधियारा है प्रजा में है अँधियारा कोई राजा नहीं है जो दीप   जलाये  और अपने राज्य में अँधेरा मिटाये  हर तरफ अँधेरा है ऐसे में  सब मिल दीप जलाये अपने चारो तरफ का अँधेरा मिटाये अँधेरा बेरोजगारी का, भ्रष्टाचार का जातिवाद  का और अपने देश को जगमगाए 

देेश और नेता

देश है तो नेता  है नेता है तो जनता है, जनता है तो वादे है वादे है तो सपने है, सपने है तो आशा है आशा है तो नेता है नेता है तो वादाखिलाफी है घोटाला है तो घोटाला करने वाले नेता अफसर है घोटाला करने वाले वाले नेता अफसर है तो काले धन्धे है कले धन्धे है तो छानबीन है छानबीन है तो सरकारी अफसर है सरकारी अफसर है तो भष्ट्राचार है भष्ट्राचार है तो घोटाला है, सरकारी काम है तो कामचोरी है कमचोरी है तो हडताल है हडताल है तो बेकारी है बेकारी है तो बेरोजगारी बेरोजगारी है तो नेता है नेता है तो घोटाला है घोटाला है तो नेता है

महिलाओं की स्थिति चिंताजनक

यह बिडम्बना ही है कि आज स्त्री विमर्श चर्चा का विषय बन कर रह गया है। इसके लिये आन्दोलन भी होते है, पर कोई बदलाव नहीं आया है। क्या यह विषय मात्र चर्चा का रह गया है हर जगह लडकियो को ही त्याग करना पडता है। उन्हे शिक्षा से भी वंचित रखा जाता है, लडकियॉ एक नन्हे पौधे  की  भाति होती है जिसका बीज कही लगता है और पेड कही और बडा होता है। जब पौधा छोटा है तो उसकी देखभाल बहुत प्यार से की जाती है और एक दिन उसे दूसरे जगह लगा दिया जाता है। ऐसा ही कुछ लडकियो के साथ होता है। वहॉ माली पानी नही डालता है तो पौधा मुरझा जाता है उसी तरह से लडकियो के साथ होता है।         क्या बिडम्बना है कि हर दूसरी लडकी कुपोषण का शिकार है। 1000 पुरूषों पर 914 लडकियॉ है कितनी भयावह स्थिति है। हर 10वी लडकी यौन शोषण का शिकार होती है। कितनी लडकियो को कोख में मार दिया जाता है क्या दोष है उनका बस यही कि वो लडकी है, क्यो नही उसे भी इन्सान समझा जाता है। आज भी लडका पैदा होनक पर मिठाई बटती है, और लडकी पैदा होने पर बहू को कोसा जाता है। यह भी सही है कि यह स्थिति आज से नहीे काफी पुरानी है। हमेशा लडकियो को ही सहना पडता है, हर जगह उनको ही झ

विवेकानन्द और अध्यात्म

विवेकानन्द जी का नाम आते ही एक ऐसे महान हस्ती याद आती है जिन्होनें 39 वर्ष की आयु में ही समाज के लिये इतना काम कर दिया और समाज को एक दिशा दिखाकर वापस चले गये। पर क्या हम उनकी  शिक्षाओ को अपने जीवन में उतार पाये है यह बडा प्रश्न है? आज समाज जिस दौर से गुजर रहा है उसमे अध्यात्म की बडी कमी महसूस हो रही है। विदेष में रह रहे लोग अध्यात्म के तरफ बढ रहे है जबकि भारत अध्यात्म के लिये जाना जाता है, जहॉ कण कण मे भगवान बसते है वहॉ अध्यात्म खत्म होता जा रहा है। हम कहते है ‘ मातृ देवो भव पितृ देवो भव’ अर्थात माता को भगवान समझो, और पिता को भगवान समझो’। परन्तु विवेकानन्द जी ने कहा ‘ दरिद्र देवो भव, मूर्ख देवो भव,’ इन गरीबों, अनपढों, अज्ञानियों और दुःखियों को ही अपना भगवान मानो। याद रखो केवल इन की सेवा ही तुम्हारा परम धर्म है, हमें बताया गया है कि आप सभी की सेवा करे सभी में भगवान बसते है। विवेकानन्द जी ने बताया कि केवल जानकारी प्राप्त करने से ही ‘शिक्षित’ नही कहला सकते जब तक हम उसे आत्मसात न करे तब तक वो पूर्ण शिक्षा नही होती । हमें अपने विचारो को इस तरह आत्मसात कर लेना चाहिए कि उनके द्वारा हमारा ज

मॉ की महिमा निराली

मॉ की महिमा निराली होती है। नवरात्र में हर तरफ उन्ही की धूम है। पूरा देश इस समय पूजा में व्यस्त है, सभी किसी न किसी तरह से मॉ को खुश करने में लगे हुए है पर अफसोस की बात यही है कि जिसकी पूजा आज सारा संसार कर रहा है उसकी अस्मत की रक्षा कोई नहीं कर पाता है। यही बिडम्बना है कि जिस मॉ ने हमें जन्म दिया उसकी रक्षा हम नहीं कर पाते है। मॉ का नाता जन्म से नहीं सासों से होता है फिर भी कोई नहीं समझ पाता है, जो मॉ को समझने का दावा करते है क्या वो मॉ की हर बात को समझ पाते है उसकी त्याग, तपस्या, बलिदान, तप यह सोचनीय विषय है मॉ को कोई नही समझ सका है। मॉ एक अहसास है, पर कोई नही जानता । मॉ शब्द से हर कोई जुडा हुया है, खुद गीले में सोकर हमें सूखे में सुलाती है। आज जो हो रहा है वो कितना बुरा हो रहा है, मॉ की इज्जत को तार-तार किया जा रहा है जिस मॉ ने हमें जन्म दिया उसकी स्थिति खराब कर रहे है। क्या किसी ने सोचा कि अगर लडकी न हो तो क्या मॉ मिल पायेगी। मॉ के हाथ का खाना खाकर उसके गोद में सर रखकर साने का आनंद ही कुछ अलग है। बच्चे को समाज में एक मुकाम पर पहुचाती है मॉ महान होती है। मॉ तेरे अनेको नाम तूझे

क्यों कुर्बान होती है नारी

संस्कारो की भेट चढ़ती है नारी खुशियों की दुकान की चाभी है नारी राष्ट्र का सम्मान  है नारी फिर नारी होती है कुर्बान आचल में समेटे है परिवारों की खुशिया फिर भी सहती है सबकी बाते लोगो को ताने भी सहती है नारी फूल जैसी होती है नारी घर का अभियान होती है नारी मीठी जुबान होती है नारी सर्जन की जननी है नारी पर सभी का पहचान होती है नारी गरिमा का नाम है नारी फिर क्यों कदम कदम पर होती है कुर्बान नारी तपस्या त्याग की पहचान है नारी फिर भी सहती है नारी अपमान और जिल्लत सहती है नारी तभी वो बर्दाशत करती है हर बात को समझो न नारी को खिलौना अपनी पर आ जाये तो दुर्गा है नारी उसको पास होती है उम्मीद की एक दुनिया आचल फेलाए तो ठंडी बयार है नारी समझो न उसको  दीन  हीन  शक्ति का अवतार है नारी फिर क्यों कुर्बान होती है नारी

गुरु की महिमा

गुरु ने हमको सिखाया सही राह पर चलना है, गुरुवर ने दिया है ज्ञान परोपकार,भाईचारा,मानवता, का, जो राह हमें दिखायी वही हम ओरो को दिखाये सच्चाई और सहानभूति को आगे हम और बढ़ाये गुरु की महिमा को कोई न समझ पाया कठिन डगर हो या काटो वाली उस पर चलना सिखाया जीवन के हर मोड़ पर गुरु  के आदर्श जरुरी है, न हो गुरु  जीवन में तो जीवन अँधियारा है माना है जग ने भगवान  से पहले गुरु नाम तुम्हारा है, जो राह दिखाई तुमने उस पर चलते  जाना है, चाहे हो काटो का सफ़र हसकर बढ़ते जाना है हे गुरु तुम्हे शत शत नमन   

मर्त्य देश के निवासी

हम जिस देश में रहते है वो मर्त्य हो चुका  है सब जिन्दा लाश की तरह जी रहे है अपराध बढ़ता जा रहा  है कोई बचाने  वाला नहीं है हर कोई ढूँढ रहा  है कोई बचने आ जाये पर मरे हुए देश में कौन  आएगा हिंसा  का है बोलबाला राजा ही नहीं अच्छी  है तो प्रजा का क्या होगा भगवान का नाम लेने वाले ही माँ बहन की इज्जत लूट रहे है क्या होगा ऐसे देश का रखवाला ही लूट रहा  है कौन बचेयेगा हम कैसे देश के निवासी है ये सोचना होगा  

मानवता खो गयी

मानवता खो गयी यहाँ हर कोई है स्वार्थ में डूबा पैसे की चकाचोंध में क्या बच्चा क्या बूढा हर कोई लिप्त है माया में जनता पिस रही है महगाई  से ऐश कर रहे है नेता अमीर अमीर हो रहे है गरीब और गरीब कोई नहीं पूछता किसी से तुम क्यों उदास हो क्या हुआ तुम्हे मानवता के नाम पर सब शून्य किसी के मरने जीने से किसी को नहीं फर्क पड़ता दुनिया है बढती रहेगी क्या होगा ऐसे में न कोई त्यौहार पर किसी से मिलता है मानवता का अंत हो रहा  है यही कलयुग है क्या कहे इसका न कोई अंत है न शुरुआत 

अयोध्या का सच

क्या है अयोध्या का सच कौन  जाने सब मस्त है मंदिर  की धुन मे किसको सुध आम जनता की नेता कहते नहीं बनेगा संत कहते बनेगा राम जी का ठिकाना नहीं क्या होगा राम जी का सब अपनी रोटी सेकते  है, अयोध्या फिर सुर्खी में है संत मंदिर बनवा ही लेंगे जनता जी किसी की सुध नहीं है सब राम में मस्त है चनाव आ गए है अब  संतो को याद आई की मंदिर बनना है सब राम का मंदिर चाहते है पर जिन के पास घर नहीं है उनके घर कैसे बने ये नहीं कोई सोचता क्या होगा राम का मंदिर बना कर जब उसके भक्तो के पास ही रहने को छत नहीं

राखी का बंधन

राखी का त्यौहार लगता है प्यारा भाई- बहन का प्यार होता है सच्चा सबसे सच्चा रिश्ता होता है भाई - बहन का भाई करता है हर समय बहन की रक्षा हर साल आता है  यह त्यौहार और लता है खुशिया अपार सरहद पर वीर जवानो के लिए राखी  का बंधन होता है अपने देश के सरहदों को बचने के लिए राखी है पावन  पुनीत आओ संकल्प ले हम इस राखी पर बचायेंगे हर बहना की लाज 

पत्थरों का शहर

पत्थरों  के इस शहर में किस  से दिल  लगाऊ हर कोई लगाये  है चहेरे कोई नहीं लगता है अपना  किस से दर्द बताऊ पत्थरों के शहर में न दिलहै न जज्बात, हर कोई लगता है झूठा कैसे  हाल बताऊ सब कोई हँसते है हम पर का से दर्द बताऊ पत्थरों के शहर में हर कोई हेरान है

ये कैसी स्वतंत्रता

 फिर आया १५ अगस्त  क्या  लाया एक और दिन न याद आते है शहीद  और न  उनका बलिदान बस याद आता है लडू और    कुछ  नहीं  क्या  यही रह गयी है  स्वतंत्रता ये कैसी  स्वतंत्रता  है? बच्चो  को क्या पता क्या  होता है बलिदान क्या है देश भावना एक  दिन मना लेने  से हो  जायेगा   ये दिन  पूरा फिर हो जायेंगे हम गुलाम और फिर कैसी  स्वतंत्रता और क्या इस दिन का  काम 

सावन में प्रेम की की बूंदे

सावन में   जब गिरती है बूँद तो  भीग जाता है  तन मन और नाचने लगता है, ऐसा  लगता है  हर तरफ छाया है प्रेम  खुमार और सभी मस्त है सावन की   फुहारों में, हर फूल कली  कह रही है सावन में भीगने का मन करता है प्यार का  अहसास होता है सावन में हर कोई खुश है सावन की बूंदों में नदी सुमंद्र  से   मिली सावन में   बादल   मिले बादलो से ऐसा लगा दो  प्रेमी मिल रहे  इस  सावन में  

एक युग पुरुष

था सच्चा बेटा इस धरती का कर गया बड़े वो जिसके आगे दुनिया झुकती था उसका नाम विवेकानन्द जीना उसने है सिखलाया वरना  हम क्या क्या करते अपने लिए  तो सब जीते है पर जीना आये  दूसरो  काम था नाज जिसे अपनी धरती पर कर गया संसार  नाम वो है सबमे साहस  मानवता का  सिखला गया साहस का पाठ वो, ना  जात्ती पाती न उच नीच सब है बराबर इस  जहा में ऐसा पाठ  पढ़ाया  उसने देशप्रेम की ललक उठे सिखलाया की  कैसे हो नए समाज का सर्जन यहाँ काटो पर चलकर  भी उसने कर  दिया गर्व  से नाम अमर हे नाज हर भारतवासी को   क्यों न होते आब विवेकानंद छोटी सी आयु में ही कर गए वो नाम अमर अब हम सबकी है बारी कर जाये एक नए समाज का निर्माण यहाँ

कौन है वो

कौन है वो जिसका है इंतजार  खड़ा दरवाजे पर कौन किसकी है आहट दबे पाँव कोई आ रहा  है हुई  थोड़ी  सी हलचल आ गया  वो ये तो कोई अजीब सा इन्सान है किसे लेने  आया है  एक सांस टूटी और ले गया वो अजीब इन्सान एक ज्योति और छोड़ गया वो निर्जीव शरीर किसके लिए सिर्फ रोने के लिए एक मलाल रहा कुछ न कर पाए हम इस जिन्दगी में बेकार हो गया जीवन व्यर्थ की बातो में  अब  एक आस   आयेंगे फिर से इस जहा में कुछ के तो आसूं पूछ पाएंगे हम    

दर्द न जाने कोय

आखे नम हर तरफ तभाही का मंजर सब बिछड़े और  समा गए   काल  के हाथो में अपनों का दर्द  सहा नहीं जाता पर भगवान की मर्जी के आगे रहा नहीं जाता आओ हाथ बढ़ाये रोतो को हँसाये बिछड़ो को मिलाये और ले संकल्प न करेंगे प्रक्रति से छेड़ छाड़ नहीं तो फिर एक बदल फ़टेगा और कितनो को और ले जायेगा जायेगा अपने संग  खुद ही दोषी है पर खुद का दोष दिखता  नहीं     इस काल के आगे अपना बस चलता नहीं मेरी यही गुजारिश है दोस्तों इस दर्द को समझो और बढ़ो आगे  दो सहारा उनको जिनका कोई नहीं इस जहा में हम किसी के आसू पोछ पाए तो समझो जीवन हुआ सार्थक हमारा दोस्तों   

पिता जीवनदाता

 पिता होता है जीवनदाता माँ की तरह प्यारा माली की तरह सीचा हमको बचाकर रखा हमें सब दुखो से जैसे  पॊधो  को सम्हालते वैसे पिता हमें सम्हालते हर बात हमारी करते पूरे अपने भूके रहकर भी वो पेट हमारा भरते है, दुखो की परछाई भी हम पर न  पड़ने देते पिता से ही बच्चो  का दुलार है पिता से हर त्यौहार है पिता से ही माँ का सुहाग है पिता से ही जीवन का  संचार है पिता नहीं तो जीवन अनाथ है पिता भगवान के बाद दूजा नाम है पिता नहीं तो जीवन बेकार है पिता ही जीवन की साँस है

शादी और मौत में समानता

शादी का ख्याब हर कोई  सजाता है, और चाहता है बंध जाये ऐसे बंधन में जो टूटे से भी न टूटे, और मौत भी एक ऐसा बंधन है जो बंधन अटूट होता है, एक दिन सबकी खुशियों है लिए जाना  होता है पराये घर और जाना होता है सबको दुखी करके भगवन के  पास क्या समानता होती है दुल्हन सजती है, घर सजता है और जब मौत होती है तो भी सजाया जाता है दुलहन  को उसके दुसरे घर भेज  दिया जाता है, और अर्थी को भी सजा कर  भेज दिया जाता है उसके दुसरे घर शादी में भी आसू बहते है और मरने पर भी कितनी समनाता है पर एक जगह जिन्दगी शरू होती है, और एक जगह खत्म सब चले जाते है आसू बहाकर और रह जाती है बस यादे  

सावन

सावन आया बारिश लाया तपती गर्मी से राहत  लाया पेड़ पॊधे सब भीग गए और हरियाली छा गयी सब को मिली राहत गर्मी हुई गायब सावन की बूंदों में कितना अपनापन होता है मन नहीं रहता बस में मिलने को  करता है, सुंदर  सपने आते है सावन में, सब होते कितने खुश सावन में होता मन इतना प्रफुलित हर तरफ हरियाली की चादर ओढ़े धरती ने ओढ़ी चुनरिया हर कोई मस्त है सावन की बूंदों में सावन की  होती बात निराली हर कोई डूब जाना चाहता है सावन के मौसम में

राजनीति

राजनीति का खेल निराला  होता है हर कोई इस खेल का खिलाडी होता है हर कोई पांच साल का  गेम में मस्त  विचार कैसे भी हो  मकसद एक ही है कोई  भी हो पार्टी   सब कर रहे देश को बर्बाद लूट मार का हो रहा व्यापर हर तरफ हाहाकार पांच साल बाद आते है और झुककर करते है सलाम और कहते है की हम सा न कभी हुआ  न होगा जनता  है हेरान क्या होगा इस देश का कोई नहीं जानता राजनीति का खेल निराला  होता है

कजरारे बादल

बादल आये बादल आये काले काले बादल आये जब टकराते है आपस में, तो होती है बरसात और धरती की प्यास बुझा देता है आकाश जब बादल टकराते है तो मानो दो प्रेमी एक दुसरे से बाते करते नज़र आते है, क्या  सुंदर नज़ारा होता है सब तरफ खिली खिली महक होतीहै काले बादल  एक सन्देश लाते  है हर  तरफ बिखेरो खुशियों की चांदनी न रहे कोई उदास इस जमी पर सब और बिखरी हो खुशियों की बरसात काले बादल काले बादल छाए है नभ के उपर

देहज प्रथा

दुल्हन की डोली उठी सज धज वो सुसराल चली देहज का दानव संग् चला जाते ही सुसराल वाले तंग करने लगे क्या लायी हो बहू घर से वो बोलो  प्यार लायी हु कहा  है पैसा और सामान वो तो नहीं है मेरे पास हुआ  मानवता का अंत सब मिल करे अत्याचार और जिन्दगी की साँस टूट गयी एक अबला लड़की फिर रूठ गयी रूठी अपने जीवन से हो गया अंत देहज का दानव खुश  हुआ हुई उसकी जीत हरा एक पिता बेचारा क्या था उसका गुनाह की एक लड़की अ जनम हुआ उसके घर, क्या लड़की होना गुनाह है?????????????

पर्यावरण

  आज समय  कह रहा है पर्यावरण बचाओ, पेड़ पॊधे कट रहे है वो विच्रारे कह रहे है मुझे मत काटो पर कोई  सुन रहा उनकी जब  गर्मी जयादा  पड़ती है तो ढूंढते सब पेड़ की छाव पर कट रहे है पेड़ हमारे सुख  रही है नदिया   बन रहे है पत्थरों के शहर जब   तक रहेंगे पेड़ हमारे मिलती रहेगी छाव  हमें हम   जा रहे है पर्यावरण से दूर जो देता है हमें  शीतलता पर हम न पॊधे लगाये तो कैसी  धरती  हमारी ये तो सोचो जीवन है उसमे जिसे हम काट रहे है उसका दर्द कौन  समझे न कह पाए कोई वो किसी से आओ हम संकल्प ले की हमें पेड़ लगाना है तभी  होगी धरा  सुंदर और बचेगा पर्यावरण  

गर्मी

 खिड़की  से  झाकता   सूरज  तपती  धरती आये  पसीना गर्मी   की  है बात  निराली  सब  होते घरो में बंद  और लेते आम का  मजा ना पढने की झंझट, ना  स्कूल जाना सूरज  देव ने  आखे  खोली  सबको  मिला उजाला सब करते मिल कर धमाल गर्मी में सब  खाते  आइसक्रीम हर मौसम  का  अपना मजा गर्मी हो सर्दी

प्यार भरी होली

होली का त्यौहार है रंगों की भरमार है सभी डूबे है   मस्ती में होली है भाई होली है, आसमान में रंग उड़ रहा, प्यार का रंग सब पर चढ़ रहा, बीच  सड़क में  टोली है, होली है भाई होली है, सब झूम  रहे है,  रंगों  की बौछार में, कोई  भांग की ठंडाई में खुश हैं, कोई पानी के गुब्बारे मे खुश है,  क्या बच्चे क्या बूढ़े, सब  रंगों में डूबे है, क्या  नेता  क्या अभिनेता हर तरफ है प्यार का रंग नफरत की कही जगह नहीं, ये होली का त्यौहार ऐसे ही बिखेरता रहे अपना प्यार का रंग ।। गरिमा 

होली

होली   आई खुशिया लायी,  चहकी चिड़िया डालो पर,  हर  तरफ  है खुशबू  पकवानों की सभी है मस्ती में  चूर होली आई होली आई, रंगों  में डूबा संसार हर तरफ है प्यार  का रंग सबके चेहरे लगते रंगीन,  इतने पावन पर्व पर भी क्यों नफरत का रंग लगाते क्यों खेलते खून की होली रंगों के इस त्यौहार को क्यों करते है बदनाम मस्ती में  खेलो होली रंग लगाओ गुझिया खाओ सब मिल ये त्यौहार मनाओ आई रे होली आई रे होली

नदी

नदी  बहती है  दो किनारे को  नहीं छू पाते दोनों किनारे   बहते रहते है, नदी का काम  है बहना  शांत तरीके से  नदी और जीवन कितनी सामान   है  जीवन भी इसी तरह बहता है  कितने भी तूफ़ान आ जाये  बस लड़ता रहता है  जैसे नदी में तूफ़ान आ जाते है  फिर भी वो बहती रहती है  तूफानों से लड़कर  उसी तरह जिन्दगी है  हर तूफ़ान का सामना करती है  हिम्मत नहीं हारती है   नदी से सीखना  होगा हमें  की हिम्मत नहीं हराना कभी  चाहे जो भी हो जाये  नदी की तरह शांत से बहते रहना है 

नारी तुझे प्रणाम

जीवन भर  सहती सजा यही तेरी है व्यथा नहीं तेरे मन में  कोई   पाप करती  तू सबको माफ़ तेरा जीवन सागर से महान,    चलते  रहना  तेरा काम     घर  को  तुम स्वर्ग बनाती रिश्तो को भी तुम  सजाती जैसे हो दिया की बाती पर फिर भी क्यों समझ  नहीं पाते तेरी को क्यों अबला बताते तो है जननी तू है महान खुद को भुलाकर जीती है सबके खुश  में खुश होती है अपने दर्द छुपाती  है फिर भी क्यों नहीं समझ पाते नारी की महानता को ऐसी नारी को मेरा प्रणाम 

वैलेंटाइन दिवस

फिजा का रंग बदलने लगा है हर तरफ प्यार का रंग छाने लगा है, सब पर छाया है प्यार  का खुमार हर कोई है  बेक़रार   करने को इज़हार अपने प्यार का पर प्यार क्या प्रेमी प्रमिका का ही होता है प्यार का इज़हार तो हम कर सकते है अपने माँ पिता जी  से, अपने भाई बहन से अपने गुरु से किसी से भी क्या वैलेंटाइन का मतलब प्रेमी प्रेमिका  का प्यार ही होता है, अगर इस बार सब ये संकल्प ले की वैलेंटाइन दिवस पर हम करेंगे अपने देश से प्यार तो होगा इस दिन का सम्मान

वक़्त नहीं है

  पत्नी  का  गाना  सुन   सकते  है ,     माँ   की लोरी  सुनने का   वक़्त नहीं है मोबाइल पर  बाते कर    सकते है दोस्तों के लिए वक़्त नहीं है, सारा दिन घूम सकते है पर पिताजी के लिए वक़्त नहीं, सिनेमा  देख सकते है पर पढने के लिए वक़्त नहीं, ऑफिस  में गप मार सकते है पर काम  के लिए वक़्त नहीं, बहस कहो तो   कर सकते है  पर समाधान के लिए वक़्त नहीं, दूसरो की गलती निकल सकते है पर अपनी गलती ढूँढने के लिए वक़्त नहीं, कब आएगा वो वक़्त  हम कर पाएंगे सारा काम ये भी बटने के लिए हमारे पास वक़्त नहीं

मेरा मन

मेरा मन करता है कि आसमान में उड़ जाऊ, हाथ से छुकर नन्ही नन्ही कलियों को, जो खिलना चाहती है  उनको  लेकर उड़ जाऊ नन्ही नन्ही बूंदों को समेट कर पानी का सुमंदर बनाऊ और उसमे कागज की नाव चलाऊ मेरा मन करे की आसमान से तारे तोड़कर एक छोटा सा घर बनाऊ पर क्या ये संभव है? मेरा मन करे की पानी के साथ खेलू, और मन करे की उड़ जाऊ आसमान में पर ये एक कल्पना है  ऐसा होता   नहीं है मेरा मन करे

कंकड़

कंकड़ का क्या अस्तिव एक छोटा सा टुकड़ा जो घर पर मारो तो काच टूट जाये बने तो घर की नीव बन जाये जितना छोटा कंकड़ उतने उसके फायदे प्रेमी इसका उपयोग प्रमिका को जागने में करते बच्चे नदी में मारते, जब मारते तो नदी में होती है हलचल तो बच्चे होते है खुश कंकड़ क्या होता है इतना छोटा सा कड क्या क्या कमाल दिखाता है प्रेमी के लिए है वरदान कंकड़ न होता तो क्या होता दुनिया होती कितनी  वीरान कंकड़ है कितना छोटा सा पर काम  करता कितने महान 

फिर छाया बसंत

सजी धरती आज फिर पीली चुनरिया ओढ़कर, हर तरफ छाई  है फूलो की महक हर कोई खुश  है आम की बोर देखकर सूरज ने भी आखे खोली सरसों भी फूली हुई है चारो और आया सखी फिर से बसंत कोयल की कूक है चारो ओर, सब कुछ लगता कितना नया फागुन खड़ा है  दरवाजे पर सब पर है मस्ती छाई और छाई है माँ सरस्वती  की आराधना की  धूम हर कोई नाच रहा है ठण्ड से मिली राहत आया सखी फिर से बसंत

सिर उचा रहे देश का

 शान न भारत की घटने पाए हम भारत के बेटे है, जान दे देंगे हम पर देश पर आच न आने देंगे 64  साल बीत गए आओ सोचे क्या खोया हमने और कहा पर हम  आये 64 साल  बाद भी हम मानसिक  रूप से   गुलाम रहे हम अब भी देश से न  जुड़ पाए तो हम क्या कर पाएंगे केवल बुराई करके, हम अपने फ़र्ज़ से क्या हम सोचो बच  पाएंगे आज फिर से  विचार करे हम क्या खोया क्या पाया है कितना हम देश से जुड़ रहे और कितना हम  भाग रहे आज फिर वो समय आ गया जब हम फिर से  संकल्प ले की भारत की शान  खोने न देंगे   

नारी

नारी  हू   में मुझमे  है छमता, फिर  क्यों समझते है कमजोर  मुझे,  मैंने सबको चलना सिखाया,  सब कुछ भूल किया सब  अर्पण फिर भी क्यों हू में अबला सहनशक्ति है मेरे अंदर दुर्गा का रूप हू फिर भी क्यों नहीं मानते सब  क्यों कहते है नारी तो बर्बादी है नारी न होती तो ये दुनिया न होती ये क्यों नहीं मानते है आज हर जगह बदनाम हो  रही क्यों सब  ऐसा काम कर रहे मेरे अंदर भी है एक जान ये  क्यों नहीं जानते    

प्रेम

प्रेम  शब्द  है  या  विस्बास क्या है प्रेम?  प्रेम  अनछुआ सा  अहसास है    जो महसूस किया जाता है   प्रेम को कोई नहीं समझ सका है, प्रेम  था   राधा का  ऐसा प्रेम कहा मिलता है, प्रेम सावन की  बूंदे है प्रेम बहती नदी है  प्रेम हर  एक  जगह  में है फिर भी  लोग लड़ते है क्यों?  अगर सब यही समझ  ले तो   नफरत के लिए जगह ही न  रहे, प्रेम हो हर तरफ तो दुनिया  कितनी अच्छी हो